दिवंगत कामरेड सन्द्वीप बागची लाल सलाम

क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आन्दोलन के अग्रणी नेता और ’संधिक्षण’ पत्रिका के संस्थापक सम्पादक कामरेड सन्द्वीप बागची का 20 अपै्रल 2015 को निधन हो गया है। वे पिछले कुछ वर्षों से गम्भीर बीमारियों से ग्रस्त होने के कारण चलने-फिरने में असमर्थ थे और चिकित्सकों द्वारा किए गए अनेक प्रयासों के बावजूद उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हो पा रहा था। अंततः बीमारी की अवस्था में 78 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। भारतीय क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आन्दोलन ने एक अग्रणी और कर्मठ योद्धा खो दिया है।

यहां हम कामरेड सन्द्वीप बागची जैसे आजीवन क्रांतिकारी कम्युनिस्ट के जीवन का समग्र मुल्यांकन करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। लेकिन उनके सतत सक्रिय क्रांतिकारी जीवन के कुछ प्रमुख पहलुओं का उल्लेख किये बिना उनके प्रति हमारी श्रद्धांजलि अधूरी रहेगी।

कामरेड सन्द्वीप बागची का जन्म वर्ष 1937 में हुआ था। 1950 के दशक के मध्य में उनका राजनीतिक जीवन जादवपुर विश्वविद्यालय के एक छात्र के रूप में आरम्भ हुआ। यह वह समय था जब मजदूर, किसान और मेहनतकश जनता का धीरे-धीरे राष्ट्रीय नेतृत्व से मोह भंग हो रहा था और आजीविका से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर संघर्षों की शुरूआत हो रही थी। 1959 में पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर खाद्यान्न आन्दोलन हुआ जिसने शासक वर्ग को हिला कर रख दिया। इसी समय पर अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में भी जबरदस्त ऊथल-पुथल मची हुई थी। ख्रुश्चेव के नेतृत्व में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी सुधारवादी राह पर फिसलना शुरू कर चुकी थी। ऐसे दौर में भी कामरेड सन्द्वीप बागची वर्ग विहीन, शोषण मुक्त समतामूलक समाज के निर्माण के प्रति समर्पित रहे और उन्होंने आर एस पी के माध्यम से सक्रिय राजनीति की अपनी यात्रा आरम्भ की। उस समय पश्चिम बंगाल का कम्युनिस्ट आन्दोलन एक कठिन दौर से गुजर रहा था। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद शासक वर्ग ने कम्युनिस्टों पर हमला बोल दिया था। शासक वर्ग का राष्ट्रवादी प्रचार तंत्र आम जनता पर भी असर डाल रहा था। उस वक्त मजदूर आन्दोलन भी अस्थायी ठहराव के दौर में था। फिर भी ये तमाम प्रतिकूल परिस्थितियां कामरेड सन्द्वीप बागची कोे हिला न सकी। 1960 के दशक के मध्य से ही पश्चिम बंगाल सहित समूचा भारत मजदूर संघर्षों से गूंज रहा था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के पतन के चिन्ह और अधिक स्पष्ट हो रहे थे और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के झंडे को बुलंद की हुई थी और यहीं से महान बहस की शुरूआत हुईं। ऐसे वक्त में, 1965 में कामरेड सन्द्वीप बागची ने अपनी नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से समाजवाद के लिए संघर्ष की दिशा में क्रांतिकारी संघर्ष में कूद पड़े। वे एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और आजीवन इसी हैंसियत से काम करते रहे।

सीपीआई, सी पी एम, आर एस पी और ऐसी अन्य पार्टियों ने 1967 में हुए चुनावों में विजय के बाद सरकार बनाने का निर्णय किया। कामरेड बागची और आर एस पी के भीतर उनके अन्य कामरेड को यह समझने में कठिनाई नहीं हुई की ये पार्टियां मजदूरों और किसानों के जोरदार आन्दोलनों को संसदीय व्यवस्था की संकीर्ण सीमाओं के भीतर थामने की कोशिश कर रही थी और ऐसा कर इन संघर्षों की क्रांतिकारी संभावनाओं को ख्त्म कर रही थी। सरकार बनाने के बाद मजदूर आन्दोलन पर रोक लगाने में इन पार्टियों के नेतृत्व की भूमिका ने इस टकराव को और ज्यादा बढ़ा दिया। आर एस पी की संशोधनवादी-सुधारवादी राह से जुड़े ऐसे ही अनेक सवालों पर यह असहमति बढ़ती गई और जब बंगलादेश मुक्ति युद्ध के संबंध में आर एस पी ने राष्ट्रवादी नजरिया अपनाया तब यह टकराव शिखर पर पहुंच गया। कामरेड बागची ने 1971 में पार्टी छोड़ दी और ’संधिक्षण’ का प्रकाशन शुरू किया। पहले बनी योजना अनुसार उनके अन्य कामरेडों ने 1972 में पार्टी छोड़ी और कामरेड बागची के साथ मिलकर एक कम्युनिस्ट क्रांतिकारी संगठन का निर्माण किया।

लगभग इसी समय, जब आर एस पी के भीतर वैचारिक संघर्ष परिपक्व हो रहा था, सी पी आई एम के क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं ने बगावत कर सीपीआईएमएल पार्टी का गठन किया जिसे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने मान्यता दी। परिणाम स्वरूप तमाम क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं में सी पी आई एम एल के प्रति जबरदस्त आकर्षण उत्पन्न हुआ। लेकिन आर एस पी के भीतर संघर्ष चला रहे कार्यकर्ताओं को आसानी से समझ आ गया कि सी पी आई एम एल की राजनीति में मजदूर वर्ग की राजनीति मुख्यतया उपेक्षित थी। इसलिए कामरेड सन्द्वीप बागची और उनके साथी सी पी आई एम एल पार्टी की राजनीति को स्वीकार नहीं कर सके। इसके बाद जल्द ही उग्र बामपंथी, दुस्साहसिक राजनीति सी पी आई एम एल पर हावी होने लगी और अंततः वर्ग राजनीति पर आधारित दृढ़ अवस्थिति अपनाने में असफलता और राजकीय आतंक के कारण सी पी आई एम एल अनेक ग्रुपों में विभाजित हो गई। संधिक्षण ने अपनी शुरूआत से ही सी पी आई, सी पी आई एम, आर एस पी आदि की सुधारवादी-संशोधनवादी राजनीति और सी पी आई एम एल की उग्र बामपंथी, दुस्साहसिक राजनीति के खिलाफ मजदूर वर्ग के नजरिए से लगातार वैचारिक संघर्ष चलाया। बेशक यह आसान नहीं था, खास कर उस वक्त जब इन दो ताकतवर विरोधियों के खिलाफ एक साथ संघर्ष चलाना था। लेेिकन इस कार्य के लिए आवश्यक दृढ़ संकल्प और विश्वास की कोई कमी नहीं थी क्योेंकि शुरूआत से ही उनका मजदूर वर्ग में गहन विश्वास था और उनकी एक सुस्पष्ट मार्क्सवादी-लेनिनवादी अवस्थिति थी। कामरेड सन्द्वीप बागची ’संधिक्षण’ की स्थापना के समय से ही उसके सम्पादक रहे और वैचारिक संघर्ष में उनकी नेतृत्वकारी भूमिका निर्विवाद रही। ’सधिक्षण’ने मार्क्सवाद-लेनिनवाद की उन बुनियादी सच्चाईयों को रेखांकित किया जिन पर सुधारवादी-संशोधनवादी परदा डाल रहे थे और जिन पर सीपीआईएमएल कभी जोर नहीं दे रही थी। ’संधिक्षण’ ने एक ओर तो सरकार बनाने,चुनावी या संसदीय राजनीति जैसी संशोधनवादी-सुधारवादी राजनीति की विभिन्न अभिव्यक्तियों के खिलाफ अनथक संघर्ष चलाया, दूसरी ओर उसने सी पी आई एम एल की चुनाव बहिष्कार और जन आन्दोलन और जन संगठनों के बहिष्कार की राजनीति के खिलाफ भी लगातार संघर्ष चलाया। ’संधिक्षण’ ने न केवल इन दोनों विच्चुŸिायों के खिलाफ संघर्ष चलाया, बल्कि ढेर सारे सवालों के संदर्भ में वाम और दक्षिणपंथी भटकावों के समकक्ष सही मार्क्सवादी-लेनिनवादी अवस्थितियों पर भी जोर दिया। इस संघर्ष में कामरेड सन्द्वीप बागची ने प्रमुख भूमिका अदा की। उनका मुख्य जोर अगुवा मजदूर वर्ग को जागरूक बनाने पर था ताकि मजदूर बर्ग को एक स्वतंत्र वर्ग के रूप में संगठित किया जा सके। और तमाम बाधाओं के बावजूद वे जीवन भर इसी प्रयास में लगे रहे।

इस समय से शुरू कर एक लंबी अवधि तक कामरेड सन्द्वीप बागची ने कम्युनिस्ट शिविर के भीतर विद्यमान विभिन्न वैचारिक मुद्दों के संबंध में अग्रणी भूमिका अदा की। हालांकि शुरूआती दिनों में ’सधिक्षण’ ने भारत में क्रांति के चरण के तौर पर समाजवादी क्रांति की बात कही थी लेकिन बहुत जल्द ही उन्होंने अपनी अवस्थिति बदल दी। इस दौरान कामरेड बागची ने पुरानी पूंजीवादी जनवादी क्रांति, नव या जनता की जनवादी क्रांति और समाजवादी क्रांति के कार्यभार, क्रांति के चरण को तय करने के मानदंडों आदि के संबंध में मौजूद अनेक भ्रामक धारणाओं को दूर करने के लिए अनेक महत्वपूर्ण और ज्ञान वर्धक लेख लिखे जिन्हें आज भी संधिक्षण के पुराने अंकों में पढ़ा जा सकता है। इस के साथ ही इसी दौरान कामरेड बागची ने ’संधिक्षण’ में कृषि के संबंध में अनेक उल्लेखनीय लेख लिखे जिनमें अन्य सवालों के अलावा शासक वर्ग द्वारा किए जा रहे सुधारों के संबंध में कम्युनिस्टों के कार्यभार और भूमिका, साम्प्रदायिकता, आदि के संदर्भ में कम्युनिस्टों के नजरिए के बारे में प्रकाश डाला गया था। कामरेड सन्द्वीप बागची की लेखनी अत्यधिक तीखी और ताकतवर थी। इसके साथ ही मार्क्सवाद और लेनिनवाद के संबंध में उनका ज्ञान और मुद्दों की गहराई में जाने की उनकी स्वाभाविक योग्यता कुल मिलाकर उनकी लेखनी को प्रखर बना देती थी। कामरेड सन्द्वीप बागची की इसी भुमिका ने संधिक्षण को उन ऊचाईयों तक पहुंचा दिया जहां पर तत्कालीन कम्युनिस्ट शिविर के भीतर के तमाम कार्यकर्ता इसे अत्यधिक सम्मान की दृष्टि से देखते थे।

1980 के दशक के अंत में कम्युनिस्ट आन्दोलन को एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा। रूस और पूर्वी यूरोप के देशों में समाजवाद के नाम पर मौजूद शासन व्यवस्थाएं अंतिम रूप से ढह गई। हालांकि यह प्र्रक्रिया काफी पहले ही शुरू हो गई, लेकिन आम जनता के इस नग्न सच्चाई का पता इन घटनाओं के बाद ही चला। यह और अधिक स्पष्ट हो गया की चीन भी समाजवाद के रास्ते से हट गया है। इसका असर खास तौर पर मध्यम वर्गीय परिवारों से आनेवाले बुद्धिजीवी कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं पर पड़ा। मार्क्सवाद-लेनिनवाद से संबंधित विभ्रम और ज्यादा बढ़ गए। इस वक्त के दौरान वैज्ञानिक समाजवाद की असली अवधारणा को बुलंद करने में कामरेड सन्द्वीप बागची ने नेतृत्वकारी भूमिका का निर्वाह किया। उन्होंने यह तथ्य पेश किया कि रूस और पूर्वी यूरोप के देशों में क्रांति पश्चात स्थापित व्यवस्थाएं समाजवादी व्यवस्थाएं नहीं थी बल्कि वे व्यवस्थाएं समाजवाद की दिशा में संक्रमण के विभिन्न चरणों में थी जहां समाजवाद पक्षधर और पूजीवाद पक्षधर ताकतों के बीच का संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ था। इसलिए इन देशों में पूंजीवाद की पुनर्स्थापना से मार्क्सवाद-लेनिनवाद या वैज्ञानिक समाजवाद का सिद्धांत असत्य साबित नहीं होता है। इसके बाद वे समाजवाद की दिशा में संक्रमण के विषय पर और गहराई में गए और इस विषय में मार्क्स,एंगेल्स और लेनिन की शिक्षाओं पर नए सिरे से रोशनी डाली और इस तरह से समाजवाद और साम्यवाद के संबंध में कम्युनिस्ट शिविर में मौजूद गलत धारणाओं को चुनौती दी। इस गम्भीर विश्लेषण से निश्चित तौर पर सबका ज्ञानवर्धन हुआ। इसके अलावा कृषि के सवाल पर कम्युनिस्टों के नजरिए को तय करने में भी उन्होंने अहम भूमिका अदा की। भारत में फासीवाद, नई आर्थिक नीति आदि अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर कम्युनिस्टों की अवस्थिति की जांच करने और उसके निर्धारण के संबंध में भी उन्होंने प्रमुख भूमिका अदा की। इस दौरान उन्होंने अपना ध्यान कम्युनिस्ट आन्दोलन को पूर्ण बिखराव की स्थिति से पुनः खड़ा करने के संभावित उपायों पर केन्द्रित किया। वे कम्युनिस्ट पार्टी की अनुपस्थिति से बेहद दुखी थे और पार्टी निर्माण के कार्यभार के प्रति बेहद चिंतित थे। एक मौका था जब उन्होंने मौजूदा कम्युनिस्ट क्रांतिकारी समूहों को, अपना-अपना समूह अस्तित्व बरकरार रखने की स्वतंत्रता सहित, एकजुट होकर एक पार्टी में शामिल होने के विचार के पक्ष में लड़ाई लड़ी थी। अपने जीवन के बाद के दौर में वे अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी आन्दोलन के पहले अभियान की विफलता के कारण ढूंढने में लगे हुए थे।

यदि हम कामरेड सन्द्वीप बागची के जीवन के एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष का उल्लेख नहीं करेंगे, तो उनके जीवन की शिक्षाएं अधूरी रहेंगीं। मार्क्सवाद लेनिनवाद के अध्ययन, समझदारी और उनकी शिक्षाओं को आगे बढाने के कार्य में कामरेड बागची की भूमिका के बारे में कम्युनिस्ट क्रांतिकारी शिविर के कामरेड अच्छी तरह से परिचित हैं। उन्हें मुख्यतया एक विचारक, सिद्धांतवादी नेता के तौर पर जाना जाता है। लेकिन मजदूर वर्ग के साथ उनके अंतरंग और जोशीले जुड़ाव के बारे में कम लोग जानते हैं। अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन की शुरूआत से ही वे मजदूर आन्दोलन के साथ निकट से जुड़े रहे। आर एस पी में अपने दिनों से ही वे कलकŸाा के बालीगंज, तिलजला, पार्क सर्कस इलाकों में विभिन्न फैक्टरियों के मजदूर आन्दोलनों से जुड़े रहे। वे हिन्दुस्तान डेवलपमंट (जिसे बाद में हिंदुस्तान इंजीनियरिंग के नाम से जाना गया), भारत बैटरी, कलकŸाा वेयर वर्क्स, आदि के मजदूर आन्दोलन के रोजाना के कामों में शामिल रहे और हड़ताल या लाकआऊट के दौरान वे फैक्टरी कैम्पों में भी रहे। बाद में 1980 के दशक में भी सैद्धांतिक वैचारिक संघर्ष में व्यस्त रहने के बावजूद उन्होंने भारत टिन एंड इनेमल, फ्लोरा बेकरी, आदि की यूनियनों में दिन प्रतिदिन के कामों में भी हिस्सा लिया। अपने सक्रिय जीवन के आखिरी दिन तक वे भारत बैटरी की टेªड यूनियन गतिविधियों से जुड़े रहे। उनके साथ काम करने वाले मजदूर कामरेड आज भी उन्हें याद करते हैं कि किस तरह से वे मजदूरों की राय के आधार पर यूनियन को लोकतांत्रिक तरीके से चलाते थे । मजदूर कामरेड उन्हें याद करते हैं कि किस तरह से वे मार्क्सवाद लेनिनवाद के बुनियादी पहलुओं के बारे में अगुवा मजदूरों को बेहद सरल और स्पष्ट तरीके से समझा सकते थे। उनके व्यक्तित्व के एक अन्य पहलू का जिक्र करना भी बेहद जरूरी है और वह पहलू है उनकी सांगठनिक सामर्थ्य। पढ़ाई, लिखाई और अन्य सैद्धांतिक कामों में अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद सांगठनिक कामों में भी उन्होंने अत्यंत कुशलतापूर्वक नेतृत्वकारी भूमिका अदा की।

जीवन के आखिरी कुछ सालों में संधिक्षण के साथ उनका रिश्ता टूट गया था । 2008 के उŸारार्द्ध में संगठन के भीतर कुछ राजनीतिक सवालों पर एक बहस छिड़ गई जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने संगठन और संधिक्षण के सम्पादन मण्डल से त्यागपत्र दे दिया। लेकिन कम्युनिस्ट आन्दोलन को पुनर्जीवित करने या मजदूर वर्ग आन्दोलन खड़ा करने के लक्ष्य से वे कभी भी विचलित नहीं हुए। जब तक सम्भव रहा वे अपने विचारों के अनुसार कर्मठतापूर्वक काम करते रहे। अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आन्दोलन की अभूतपूर्व पराजय के इस बेहद अंधेरे, प्रतिकूल और कठिन समय में मजदूर वर्ग में अटूट और निष्कलंक विश्वास बनाए रखना वाकई बेहद मुश्किल काम है। किसी के लिए भी एक ओर मजदूर वर्ग के साथ निकट सम्पर्क कायम रखना और सैद्धांतिक और व्यवहारिक दोनों नजरिए से लगातार योगदान करना और दूसरी ओर दक्षिण और वामपंथी विच्युŸिायों के खिलाफ संघर्ष की तैयारी करना बेहद मुश्किल काम है। यह अत्यधिक कठिन कार्य आज की स्थिति में और ज्यादा कठिन हो जाता है जब समाजवादी आन्दोलन को एक करारी हार का सामना करना पड़ा है और पूंजीवाद के हमलों और धूर्तता ने अनेकों को उनकी घोषित अवस्थिति से डिगा दिया है और कई बार हमारी अनेक अवस्थितियां भी डगमगाई हैं, प्रभावित हुई हैं। ऐसे वक्त पर अगर हम जीवन के लंबे और अत्यधिक कठिन संघर्ष के इस पहलू को नहीं समझ पाते हैं तो उन कार्यों के महत्व और सार्थकता को समझना मुश्किल होगा जिनका पीछे जिक्र किया गया है। उनके साथ हमारा जो भी विवाद रहा या मतभेद रहे ’संधिक्षण’ की ओर से हम क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आन्दोलन को आगे बढ़ाने में उनकी भूमिका के लिए उस आजीवन कम्युनिस्ट को लाल सलाम पेश करते हैं। इसके साथ ही, हम यह प्रण करते हैं कि कामरेड सन्द्वीप बागची की शिक्षाओं के सकारात्मक पहलुओं को साथ लेकर आगे बढ़ने के लिए ’संधिक्षण’ यथासंभव प्रयास करेगा।




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